Saturday, 30 March 2013

 

 

शंकराचार्यजी ने स्वीकारा पूरे गांव का आतिथ्य         

जगद्गुरु स्वरूपानंदजी ने नैनोद में भ्रमण कर पूरे गांव में दिए दर्शन, गांधीनगर में हुआ पाद-पूजन

(Shailendra Joshi) 09826678087
इंदौर। (29-3-13) 
द्वारका स्थित शारदा और बद्रिकाश्रम स्थित ज्योतिष मठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती महाराज पूरे गांव के समर्पण से इतना प्रभावित हुए कि पहली बार किसी गांव में घर-घर के सामने से निकलकर दर्शन दिए। इस दौरान किसी ने उन पर फूल बरसाए तो किसी ने उनकी आरती उतारी। उनका पाद-पूजन भी किया गया। इसके बाद शुक्रवार शाम को वे भोपाल रवाना हो गए। उन्हेंं पीथमपुर बायपास रोड स्थित शंकराचार्य मठ से प्रभारी गिरीशानंदजी महाराज की अगुवाई में विदाई दी गई। रवाना होने से पहले वे नैनोद और गांधीनगर पहुंचे जहां उनका पाद पूजन किया गया।
शंकराचार्यजी होली मनाने के लिए खास तौर पर रविवार को इंदौर पधारे थे। उन्होंने प्रतिदिन मठ में श्रद्धालुओं को दर्शन दिए और उन्हें मार्गदर्शन और आशीष दिया। मठ पर जीतू ठाकुर, कृष्णा पटेल, यौवन पटेल, अरुण वर्मा, राजेश शर्मा, कोमल पटेल, कैलाश पटेल, सतीश पटेल, श्याम चौहान, राकेश बड़ौदिया, प्रतिपालसिंह टुटेजा आदि ने व्यवस्थाएं संभाली। पीठ पंडित संजय शास्री ने वैदिक मंत्रोच्चार किया। जगद्गुरु रवाना होने से पूर्व सचिव सुबुद्धानंदजी महाराज और संत मंडली के साथ नैनोद ग्राम पहुंचे और पूरे गांव की तरफ से कृष्णा पटेल के निवास पर उनका पाद पूजन किया गया। इस मौके पर बड़ी संख्या में शंकराचार्य भक्त मंडल के सदस्य और ग्रामीण इक_ा थे।
जन्मदिन पर गुरु आए द्वार
गांधीनगर के जगदीश बड़ौदिया का शुक्रवार को जन्मदिन था और उसी दिन शंकराचार्यजी उन्हें आशीष देने उनके घर पहुंचे। अपने ही घर गुरु का पाद-पूजन करने का सौभाग्य पाकर खुशी के मारे श्री बड़ौदिया के आंसू छलक पड़े। खुद को धन्य मानकर उन्होंने देर तक राहगीरों और स्नेहीजनों को मिठाई बांटी।

Tuesday, 26 March 2013

shankaracharya

सरस्वती के मंदिर में नमाज क्यों?

 शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंदजी सरस्वती से विशेष मुलाकात 
जगदगुरु उवाच -सफलता के लिए दंड नहीं धार्मिक भावना जरूरी
 -धर्म का आश्रय लो, पशु बनना छोड़ दो 
-सत्ता पर धर्म का नियंत्रण जरूरी होता है





 शैलेंद्र जोशी (deputy news editor, dainik dabang duniya, indore-mp)
इंदौर। (25-3-13) गुलामी के वक्त हमारे देवस्थानों पर कब्रस्तान बना दिए गए। ऐसा ही प्रयास भोजशाला में हुआ। हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं लेकिन जब मुस्लिम भाई निराकार परमात्मा की आराधना करते हैं और मूर्ति पूजा उनके धर्म के विरुद्ध है तो फिर सरस्वती के मूर्ति स्थल पर नमाज पढऩे क्यों जाते हैं? वास्तव में देश में जितने भी धर्मात्मा राजा हुए हैं, उनमें प्रमुख थे राजा भोज, उन्होंने धार की भोजशाला में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित की थी। यहां की संस्कृति का बड़ा सम्मान था और राजा सरस्वती की आराधना करते थे। उनके राज्य में ऐसा कोई भी व्यक्ति नहीं था जो संस्कृत नहीं जानता था। कवि कालिदास उनके सभासद थे। क्या हम इस विरासत को भूल जाएं?
जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने यह बात सोमवार को दैनिक दबंग दुनिया से खास मुलाकात में कही। वे द्वारका स्थित शारदा और बद्रिकाश्रम स्थित ज्योतिष मठ के पीठाधीश्वर हैं। उनका रविवार को नैनोद स्थित शंकराचार्य मठ में आगमन हुआ। वे होली यहीं मनाएंगे।
 संत किसी पार्टी का नहीं होता 
शंकराचार्यजी ने कहा कि भोजशाला का संकट सरकारों का ही खड़ा किया हुआ है। पहले उमा भारती ने वहां सरस्वती पूजन के लिए सत्याग्रह किया था लेकिन उस वक्त जो पार्टी सत्ता में थी, क्या उसे धर्म विरोधी माना जाए? उन्होंने कहा संतों की एक परंपरा होती है। हमारे यहां परंपरा में राज धर्म का भी महत्व है। संत किसी पार्टी का नहीं होता लेकिन यदि कुछ गलत हो रहा है तो उसका विरोध कर व्यवस्था दुरुस्त करने में उसे अहम भूमिका निभानी ही चाहिए।
मैं कांग्रेसी कैसे?
 इस सवाल पर कि आप पर हमेशा कांग्रेसी आचार्य होने का आरोप लगता रहा है, शंकराचार्यजी ने कहा कि मैं किसी कांग्रेसी के घर नहीं जाता, हम तो संत हैं, यदि वे मार्गदर्शन-दर्शन के लिए आते हैं तो हम उन्हें रोक नहीं सकते। हम सबके लिए हैं, तभी तो हमें जगद् गुरु कहा जाता है।
क्या गंगा में गंदगी बहने दें? 
स्वामीजी ने कहा गंगा में कारखानों का केमिकल और ड्रेनेज की गंदगी बहाई जा रही है। उत्तराखंड में ही गंगा पर 70 से जयादा बांध बनाए गए हैं। इस पर यदि संत गंगा को निर्मल रखने के लिए कहता है तो क्या वह राजनीतिक है? अनाज में यूरिया और अन्य केमिकल के तत्व आ रहे हैं। कीटनाशकों की बदौलत उसके कीड़े अत्यधिक जहरीले हो गए हैं। क्या संत इसका विरोध नहीं कर सकते?
क्या वे हमें गाइड करेंगे?
स्वरूपानंदजी ने कहा कि आद्य शंकराचार्य 2500 साल पहले हुए थे और तब से हमारी परंपरा चल रही है। डॉ. हेडगेवार, गोलवलकर, सुदर्शन आदि 125 साल से ज्यादा के नहीं हैं। हम उन्हें गाइड करेंगे या वे हमें गाइड करेंगे?
युवाओं को दें संस्कारों की शिक्षा
देश में बढ़ते दुष्कृत्यों की घटना पर शंकराचार्यजी ने कहा यह कृत्य युवाओं ने ही किए हैं और वे ही विरोध के लिए भी खड़े दिखाई देते हैं। वास्तव में युवाओं में संस्कारों की शिक्षा की खास जरूरत है। उन्हें यह समझाना होगा कि जैसा व्यवहार आप अपनी बहन-बेटी के लिए चाहते हैं वैसा ही व्यवहार आप दूसरों के साथ भी करें। संत को उसके आचरण से परखो 
जगद् गुरु ने माना कि यह सच है कि देश में कई नकली शंकराचार्य और संत घूम रहे हैं, लेकिन लोग जानते हैं कि कौन असली है और कौन नकली। संत की पहचान उसके आचरण से ही हो जाती है। आजकल के संत ढाबे पर खा रहे हैं।